Parshuram Jayanti 2022- जाने भगवान परशुराम का इतिहास, जन्म स्थान और कुछ रोचक बाते

Mahendraparvata Parshuram | Parshuram jayanti kab hai | परशुराम का इतिहास | परशुराम जयंती कब है और जन्म स्थान | परशुराम जयंती कब मनाई जाती है :- क्या आपको पता है की परशुराम कौन थे, परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है, भगवान परशुराम का इतिहास, निबंध महत्व कहानी और भी बहुत कुछ। अगर आप भगवान परशुराम से जुडी जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो हम आपको सारी जानकारी देने वाले है।

परशुराम जयंती हिन्दुओं के लिए एक प्रसिद्ध त्योहार है जो की हिन्दू कैलेंडर के अनुसार बैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन यानी तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। और इसी दिन अक्षय तृतीया का प्रसिद्ध त्योहार भी मनाया जाता है।

परशुराम जयंती के दिन उपवास के साथ-साथ सर्व ब्राह्मण का जुलुस और सत्संग आदि का भी आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य का प्रभाव कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन भगवान परशुराम जी की शोभायात्रा निकाली जाती है। तथा जगह-जगह पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे।

तो चलिए अब हम भगवान परशुराम के बारे में विस्तार से जानते है की भगवान परशुराम कौन थे, भगवान परशुराम का इतिहास और भगवान परशुराम से जुडी कुछ दूसरी जानकारी।

Parshuram Jayanti

परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है. इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता। भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिक लोग हैं।

परशुराम शब्द का अर्थ (Parshuram word meaning)

परशुराम नाम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम”। इन दो शब्दों को मिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथ राम” अर्थ निकलता है। भगवान राम और भगवान परशुराम दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार है। इसलिए परशुराम जी को भी विष्णुजी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है।

परशुराम के अनेक नाम से जाना जाता है जैसे की इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान परशुराम जी कौन थे (Parashurama ji kaun the)

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्मे थे। जो विष्णु के छठा अवतार हैं। परशुराम ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे। हिन्दू धर्म में परशुराम के बारे में यह मान्यता है, कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं।

परशुराम की त्रेता युग दौरान रामायण में तथा द्वापर युग के दौरान महाभारत में अहम भूमिका है। रामायण में सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे।

कैसे पड़ा परशुराम नाम (Parshuram kaise pada)

माना जाता है की है कि राम {परशुराम} ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने परशुराम जी को कई अस्त्र शस्त्र दिए। इसी में भगवान शिव का परशु भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। राम इसे हमेशा अपने साथ लेकर चलते थे। जिसके चलते इन्हें परशुराम कहा गया। राम ने बिना किसी अस्त्र से असुरों का नाश कर दिया।

परशुराम का परिवार एवं कुल (Parshuram ji ki family)

पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए।

जमदग्नि के पांचों पुत्रों वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, बृत्वकन्व तथा परशुराम में परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे। परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी माने जाते हैं।

परशुराम जयंती कब मनाई जाती है (Parshuram jayanti kab hai)

इस वर्ष 2022 में परशुराम जयंती 3 मई को आने वाली है। इसलिए इस दिन की मान्यता और भी अधिक बढ़ जाती है। तो आइये हम सब भी इस दिन भगवान परशुराम की पूजा में शामिल हो कर परशुराम भगवान का आशीर्वाद प्रकट करें।

  • परशुराम जयंती तिथि: Tuesday, 3 May
  • तृतीया तिथि प्रारंभ: 5:19 AM on May 3, 2022
  • तृतीया तिथि समाप्त: 7:33 AM on May 4, 2022

परशुराम जयंती का महत्व (Importance of Parshuram Jayanti)

भगवान पशुराम जयंती (Parshuram jayanti) के दिन बड़े बड़े जुलूस, शोभायात्रा निकाले जाते हैं। इस शोभायात्रा में भगवान परशुराम को मानने वाले सभी हिन्दू, ब्राह्मण लोग ज्यादा संख्या में मौजूद होते है।

परशुराम भगवान के नाम पर उनके मंदिरों में हवन पूजन और भंडारे किये जाता है। इस दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है। सभी लोग पूजन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और दान आदि करते हैं।

वराह पुराण के अनुसार, इस दिन उपवास रखने एवं परशुराम को पूजने से अगले जन्म में राजा बनने का योग प्राप्त होता है।

माता पिता भक्त परशुराम (Parents devotee Parashuram)

श्रीमद्भागवत में दृष्टान्त है कि गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन के लिए गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दे डाली।

अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद एवं उन्हें बचाने हेतु आगे आये अपने समस्त भाइयों का वध कर डाला। उनके इस कार्य से प्रसन्न जमदग्नि ने जब उनसे वर माँगने को कहा तो परशुराम ने सभी के पुनर्जीवित होने एवं उनके द्वारा वध किए जाने सम्बन्धी स्मृति नष्ट हो जाने का ही वर माँगा।

साथ ही यह भी कहा जाता है कि, वह न्याय के देवता हैं। मान्यता है, भगवान ऋषि परशुराम आज भी इस दुनिया में जीवित हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि, उन्होंने क्रोध में 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया। उनके इस क्रोध का शिकार भगवान गणेश भी बन चुके हैं।

परशुराम मंदिर (Parshuram temple)

अब हम आपको कुछ भगवान पशुराम के मंदिरो के बारे में बताने वाले है

1परशुराम मंदिर, अट्टिराला, जिला कुड्डापह ,आंध्रा प्रदेश.
2परशुराम मंदिर, सोहनाग, सलेमपुर, उत्तर प्रदेश.
3अखनूर, जम्मू और कश्मीर.
4कुंभलगढ़, राजस्थान.
5महुगढ़, महाराष्ट्र.
6परशुराम मंदिर, पीतमबरा, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश.
7जनपव हिल, इंदौर मध्य प्रदेश (इसे भी कई लोग परशुराम का जन्म स्थान मानते हैं).

क्षत्रियों को खत्म करने की सौगंध

एक बार पृथ्वी पर क्षत्रियों के राजा कर्तावीर्य सहश्रजून ने परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि तथा उनकी कामधेनु गाय का वध कर दिया। इससे पशुराम को बहुत ही क्रोध आया जिससे उन्होंने सभी क्षत्रियों को खत्म करने की सौगंध ली।

पृथ्वी की रक्षा के लिए कोई भी क्षत्रिय नहीं बचा। इसलिए कश्यप मुनि ने परशुराम को पृथ्वी छोड़ने का आदेश दे दिया। मुनि कश्यप की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर रहने चले गए। तब से ले कर आजतक महेन्द्रगिरी को परशुराम का निवास स्थान माना जाता है। महेन्द्रगिरी, उड़ीसा के गजपति जिले में स्थित है।

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