Maharshi Valmiki Biography in Hindi | महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय | Maharshi valmiki ka jeevan parichay | Maharishi Valmiki, Ramayan, Birth, Place | वाल्मीकि निबंध जयंती, जन्म, आश्रम, रामायण, भाषण, महत्व भजन :- हिंदू महाकाव्य रामायण को ऋषि वाल्मीकि ने लिखा था। वह रामायण गाथा में एक साधु के रूप में भी दिखाई दिए, जिन्होंने सीता, भगवान राम की पत्नी, को अपने आश्रम में ले लिया और माता सीता के बच्चों, लव और कुश को उनके निर्वासन के दौरान पाला। वाल्मीकि का जन्म हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार अश्विन महीने की पूर्णिमा को हुआ था। हर साल अश्विन महीने की पूर्णिमा के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों में कई धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिन भारत में धूमधाम से वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।
आज हम आपको इन्ही महान ऋषि वाल्मीकि जी के बारे में जानकारी देने वाला हूँ। तो कृपया आर्टिकल को पूरा और ध्यान से पढ़े। तो चलिए शुरू करते है बिना किसी देरी के।

वाल्मीकि जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटना (Maharshi valmiki ka jeevan parichay)
एक कथा के अनुसार, वाल्मीकि(रत्नाकर) जी प्रचेता नाम के एक ब्राह्मण के पुत्र थे। हालांकि उनका बचपन में एक भिलानी ने अपहरण कर लिया था, जिसके बाद इनका भरण पोषण पोषण भील जाति के लोगों ने ही किया और जिस कारण उन्होंने भीलों की परंपरा को अपनाया और आजीविका के लिए डाकू बन गए।
डाकू बनने के बाद उन्होंने कई निर्दोष लोगों को मार डाला और लूट लिया। एक दिन उनके जंगल से नारद मुनि निकल रहे थे। उन्हें देख रत्नाकर ने उन्हें बंधी बना लिया। नारद मुनि ने उनसे सवाल किया कि तुम ऐसे पाप क्यूँ कर रहे हो तब रत्नाकर ने जवाब दिया अपने एवम परिवार के जीवनव्यापन के लिए। नारद मुनि ने पूछा जिस परिवार के लिए तुम ये पाप कर रहे हो, क्या वह परिवार तुम्हारे पापो के फल का भी वहन करेगा। नारद मुनि ने कहा एक बार उनसे पूछ लो, अगर वे हाँ कहेंगे तो मैं तुम्हे अपना सारा धन दे दूंगा। रत्नाकर ने अपने परिवार से पूछा, लेकिन किसी ने भी इस बात की हामी नहीं भरी। इस बात का रत्नाकर पर गहराअसर हुआ और उन्होंने उस गलत मार्ग को छोड़ तप का मार्ग चुना एवम कई वर्षो तक ध्यान एवम तपस्या की, जिसके फलस्वरूप उन्हें महर्षि वाल्मीकि नाम एवम ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण महा ग्रन्थ की रचना की।
नाम | महर्षि वाल्मीकि |
वास्तविक नाम | रत्नाकर |
अन्य नाम | त्रिकालदर्शी, भगवान, महर्षि, गुरुदेव, ब्रह्मर्षि |
पिता | प्रचेता |
जन्म दिवस | आश्विन पूर्णिमा |
पेशा | डाकू , महाकवि |
रचना | रामायण |
कैसे मिली रामायण लिखने की प्रेरणा ?
बताया जाता है की वाल्मीकि जी का नाम रत्नाकर था और वे एक डाकू थे लेकिन बाद में जब उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि वे गलत रास्ते पर हैं तब उन्होंने इस रास्ते को छोड़ धर्म का मार्ग अपनाया था। लेकिन इस नए पथ के बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं था। उसके बाद वाल्मीकि जी ने देवर्षि नारद जी से इस बारे में पूछा और नारद जी ने राम नाम का जप करने की सलाह दी थी। जिसके बाद वाल्मीकि जी राम नाम में लीन होकर तपस्य करने लगे और अज्ञानता के कारण भूलवश वह राम राम का जप मरा मरा में बदल गया जिसके कारण इनका शरीर दुर्बल हो गया, उस पर चीटियाँ लग गई। उनकी इस कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ही ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञान का भंडार दिया और फिर उन्होंने रामायण लिखी। जो कि हिंदू धर्म में आज एक धार्मिक ग्रंथ के तौर पर पूजी और पढ़ी जाती है। इन्हें रामायण का पूर्व ज्ञान था।
वाल्मीकि जी ने सबसे पहले श्लोक की रचना कैसे की ?
ऐसा वर्णन है कि- एक बार तपस्या के लिए गंगा नदी के तट पर गये वहा वाल्मीकि जी को क्रौंच पक्षी का एक जोड़ेदिखा। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थ :- जिस दुष्ट ने भी यह घृणित कार्य किया, उसे जीवन में कभी सुख नहीं मिलेगा। उस दुष्ट ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया हैं। इसके बाद महाकवि ने रामायण की रचना की।
वाल्मीकि रामायण संक्षित विवरण (Ramayan Kisne Likhi)
महर्षि वाल्मीकि जी जी ने पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की परंतु वे आदिराम से अनभिज रहे, जिसकी प्रेरणा उन्हें ब्रह्मा जी ने दी थी। आप भली भांति जानते होंगे की रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चन्द्र जी के चरित्र का विवरण दिया हैं। रामायण में भगवान वाल्मीकि ने 24000 श्लोकों में श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी। इनकी अंतिम साथ किताबों में वाल्मीकि महर्षि के जीवन का विवरण हैं।
वाल्मीकि आश्रम में रही थीं माता सीता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब श्रीराम ने माता सीता का त्याग किया था। इस दौराव वह कई वर्षों तक वाल्मीकि आश्रम में रही थीं। यही वाल्मीकि आश्रम पर माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था। यही कारण है कि माता सीता को वन देवी भी कहते हैं। वाल्मीकि जी ने ही राम एवम सीता के पुत्र लव कुश को ज्ञान दिया था।
वाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती हैं (Valmiki Jayanti Kab Manai Jati Hai)
वाल्मीकि जयंती आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है और आपको बतादे की वाल्मीकि जयंती को प्रकट दिवस के रूप में भी जाना जाता हैं। वाल्मीकि October 9, 2022 को मनाई जाएगी।
वाल्मीकि जयंती तिथि और समय (Valmiki Jayanti Tithi Kya Hai 2022)
पूर्णिमा तिथि के लिए पूजा का समय 09 October 2022 को सुबह 03:41 AM बजे शुरू होगा और 10 October सुबह को रात 02:24 AM बजे समाप्त होगा।
वाल्मीकि जयंती का महत्व (Valmiki Jayanti Ka Mahatva)
वाल्मीकि जयंती का भारत देश में काफी ज्यादा महत्व है और इस दिन कई जगहों पर सामाजिक और धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। वाल्मीकि जी आदि कवी थे और इन्हे ही श्लोक का जन्मदाता माना जाता है, इन्होने ही संस्कृत के प्रथम श्लोक को लिखा था। वाल्मीकि जी को एक लेकर एक प्रचलित कहानी ये भी है कि जब भगवान राम ने माता सीता का त्याग किया था तो माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही निवास किया था और रामायण का रचियता भी इन्हे ही माना जाता है।
वाल्मीकि जयंती कैसे मनाई जाती हैं ? (Valmiki Jayanti Kaise Manai Jati Hai)
वाल्मीकि जयंती का भारत देश में बहुत महत्व है और भारत में वाल्मीकि जयंती बहुत धूम धाम से मनाई जाती है। इस दिन भारत में कई तरह के आयोजन किये जाते है जैसे की मिष्ठान, फल, पकवान वितरित किये जाते हैं, भंडारे किये जाते हैं, धार्मिक आयोज किये जाते है और कई जगह पर शोभा यात्रा निकाली जाती हैं।
वाल्मीकि जयंती के अवसर पर स्कूलो में और कई जगहों पर वाल्मीकि जी के बारे में भी बताया जाता है ताकी उनसे प्रेरणा लेकर मनुष्य बुरे कर्म छोड़ सत्कर्म में मन लगाये।
आज आपने क्या सीखा
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